पलायन

राज्य गठन के बाद और उजड़ा पहाड़ 

uttarakhand-governmentउत्तराखंड सरकार द्वारा जारी राज्य की 2011 की जनगणना के आँकड़ों से यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद यहाँ की कांग्रेस, भाजपा सरकारों ने उत्तराखण्ड के पहाड़ी जनपदों को खाली करने का जबर्दस्त कार्य किया है। यह प्राकृतिक संपदा को लूटने का हो या मानवीय संपदा के पलायन का हो, दोनों का तेजी से ह्रास किया है। जिस पहाड़ी क्षेत्र ने उत्तराखंड राज्य के लिए सबसे अधिक संघर्ष किया, राज्य बनने के बाद सबसे अधिक दुर्गत उसी की हुई है। 10 पहाड़ी जनपदों से राज्य बनने के बाद सबसे अधिक पलायन हुआ। यह पलायन उत्तराखंड राज्य के बाहर कम, उत्तराखण्ड के मैदानी जनपदों की ओर अधिक हुआ।
अर्थशास्त्र का सिद्धांत ही है कि पलायन अविकसित क्षेत्रों से विकसित क्षेत्रों को होता है। राज्य बनने के बाद 10 पहाड़ी जनपदों में मूलभूत सुविधाओं का जबर्दस्त अभाव हुआ। डॉक्टर, मास्टर पहाड़ों से गायब होते गये। कभी उत्तर प्रदेश के शासन में जो कार्यालय थे वे भी मैदानी जनपदों को स्थानान्तरित कर दिये गये। नेता व अधिकारी दोनों पहाड़ों में नहीं रहना चाहते हैं। सन् 2001 में पहाड़ी जनपदों की आबादी कुल उत्तराखंड राज्य की आबादी की 53 प्रतिशत थी। बाकी तीन मैदानी जनपदों की आबादी कुल उत्तराखण्ड की आबादी का 47 प्रतिशत थी। आज सन् 2011 के आँकड़े बताते हैं कि मैदानी तीन जनपदों की आबादी 53 प्रतिशत, बाकी 10 पहाड़ी जनपदों की आबादी 47 प्रतिशत रह गयी है। राज्य बनने के बाद पहाड़ी राज्य के नाम से केन्द्र सरकार से जो अनुदान भी मिला, वह भी 70 प्रतिशत मैदानी जनपदों में बाकी 30 प्रतिशत 10 पहाड़ी जनपदों में लगाया गया। देहरादून, हरिद्वार व उधमसिंहनगर की आबादी पहले 10 वर्षों में 12 लाख के लगभग बढ़ी है, जबकि उत्तराखण्ड के सबसे पुराने व शिक्षित जनपद अल्मोड़ा व पौड़ी की जनसंख्या घट गई है।
अल्मोड़ा जनपद कभी आज के उत्तराखण्ड राज्य से बड़ा था, अल्मोड़ा का मतलब ही कुमाऊँ होता था, अल्मोड़ा में राज करने वाले राजाओं के नाम से ही तराई के शहर बसाये गये। परन्तु वही अल्मोड़ा भौगोलिक रूप से पहले से सिकुड़ता आया है। 2011 के आँकड़ों के हिसाब से जनसंख्या में वह सबसे अधिक सिकुड़ गया है। अल्मोड़ा जनपद की प्रति वर्ग किमी. जनसंख्या सन् 2001 में 201 थी, लेकिन 2011 में तो घटकर 198 हो गई है, इसका अर्थ हुआ लोग प्रति किमी. 3 घट गये हैं। इसी प्रकार पौड़ी में 2 लोग घटे हैं। जबकि मैदानी जनपद देहरादून की 134, उधमसिंहनगर 163 व हरिद्वार 188 प्रति वर्ग किमी. जनसंख्या बढ़ी है। आज की राजनीति में वोट बैंक नेताओं के लिये सबसे बड़ा मापदण्ड होता है। वोट पाने के लिये वे कुछ भी कर सकते हैं। पहाड़ में लोगों के साथ विधानसभा सीट का भी पलायन हो रहा है। इसलिए हल्द्वानी से सितारगंज 70 किमी. के अन्दर चार मंत्री व एक मुख्यमंत्री बने बैठे हैं। इनको पहाड़ की क्या चिन्ता ? पहाड़ तो लुटने के लिये हैं, इसलिए प्राकृतिक संपदा को लूटने वाले ठेकेदार, देहरादून फिर दिल्ली जा रहे हैं। दूसरी ओर पहाड़ का आम आदमी लुट जाने के बाद पहाड़ से पलायन कर रहा है। पहाड़ को लूटने वाला व पहाड़ में लुटने वाला दोनों पहाड़ से बाहर जा रहे हैं।