शनिवार, 29 जून 2013



प्रेस रिलीज़ 
संगोष्ठी  : उत्तराखंड बचाने की चुनौतियां

                          
'उत्तराखंड बचाने की चुनौतियों विषय पर शनिवार 20 जुलाई को नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर के.एस. वल्दिया, बांधों के मामले के विशेषज्ञ श्री हिमांशु ठक्कर, पहाड़ पत्रिका के संपादक डॉ. शेखर पाठक और उत्तराखंड में जनमुद्दों को लेकर संघर्षरत एक्टिविस्ट शमशेर सिंह बिष्ट ने संबोधित किया। उत्तराखंड में हुई वर्तमान तबाही के कारणों की भूगर्भीय जांच पड़ताल करते हुए प्रो. के.एस. वल्दिया ने हिमालय की संरचना, और केदार घाटी में हुई तबाही के कारणों को दृश्य चित्रों के माध्यम से स्पष्ट करते हुए कहा कि भूगर्भीय संरचना को समझे बगैर किए गए निर्माण कार्य अंतत: आपदा के लिए अभिषप्त थे।
श्री हिमांशु ठक्कर ने बांधों के पक्ष में दिए जा रहे सरकारी दावों को आंकड़ों की भाषा में कसते हुए कहा कि 90 प्रतिशत बांध जिन ऊर्जा जरूरतों के लिए बनाए जा रहे हैं उसका पचास प्रतिशत भी उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। उत्तराखंड में बने और बनाए जा रहे बड़े बांध (ऊंचाई पच्चीस मीटर से अधिक) अंतत:  ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के बजाय विनाश का कारण बनते जा रहे हैं.
प्रो. शेखर पाठक ने कहा कि उत्तराखंड में आई वर्तमान तबाही को उत्तराखंड के साथ-साथ  पूरे हिमालय के सन्दर्भ में इसके व्यापक अर्थों में - जिसमें निर्माण कार्य, बाँधपर्यटन जैसे नीतिगत मसले शामिल हैं, समझने की जरूरत है। डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट ने सरकार और प्रशासन की असंवेदनशीलता को सामने रखते हुए कहा कि आज उत्तराखंड में विकास की सही दिशा के लिए एक बड़े जनांदोलन की जरूरत है।
उत्तऱाखंड पीपुल्स फोरम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की पृष्ठभूमि रखते हुए समयांतर पत्रिका के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि हिमालय में होने वाले भूगर्भीय, भौगोलिक और पर्यावरणीय घटनाओं के व्यापक परिणामों का असर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर अवश्य पड़ेगा। फोरम की ओर से प्रकाश चौधरी ने कहा कि यह तबाही उत्तराखंड में चल रही प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ प्रकृति की चेतावनी है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड का विकास यहां की अतिसंवेदनशील पारिस्थितिकीय और पर्यावरण से तालमेल बैठाए बगैर संभव नहीं है. कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट चारु तिवारी ने सभी वक्ताओं और अतिथियों का धन्यवाद किया। 
इस कार्यक्रम में जल पुरुष राजेन्द्र सिंह, एक्टिविस्ट संदीप पांडेय, अरुण तिवारी, पुरातत्ववेत्ता रविन्द्र सिंह बिष्ट, वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल और बल्ली सिंह चीमा, विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी, विजय प्रताप, कमल कर्नाटक, दीवान सिंह बजेली, क्षितिज शर्मा सहित कई जाने-माने बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार, छात्र और बड़ी संख्या में लोग जबरदस्त बारिश और ट्रैफिक जाम के बावजूद सेमिनार में पहुंचे। 
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मित्रो,
गत माह के मध्य में उत्तराखंड में जो हुआ वह हिमालय के ज्ञात इतिहास की सबसे बड़ी त्रासद घटना है, जिसमें10 से 25 हजार के बीच देश भर के लोगों के मारे जाने की अनुमान है। प्रश्र है ऐसा क्यों हुआक्या इन घटनाओं को रोका जा सकता था या रोका जा सकता हैअगर नहीं रोका जा सकता है तो क्या भविष्य में विनाश के इस तांडव का सिलसिला यों ही चलता रहेगा या और बढ़ेगायह याद रखना जरूरी है कि हिमालय मात्र उन लोगों का नहीं है जो हिमालय में रहते हैंउन लोगों का भी नहीं है जो इसका दोहन करने में लगे हैं;उन लोगों का भी नहीं है जो इस पर शासन कर रहे हैं या हमारे नीति नियंता हैं; हिमालय का संबंध पूरे भारतीय उप महाद्वीप से है। यह मात्र सांस्कृतिक या धार्मिक ही नहीं है बल्कि भौगोलिक भी है। यानी हिमालय में होने वाले भूगर्भीयभौगोलिक और पर्यावरणीय घटनाओं के व्यापक परिणामों से यह उपमहाद्वीप बच नहीं सकता।

स्पष्ट है कि इस घटना के दो पक्ष हैंपहलाअगर यह प्राकृतिक आपदा है तो ऐसा क्यों हुआ और इसे किस तरह समझा तथा व्याख्यायित किया जा सकता हैदूसराअगर यह मानवनिर्मित है तो सवाल है इसकी पुनरावृत्ति को किस तरह और कैसे रोका जा सकता है?


यह कार्यक्रम उत्तराखंड पीपुल्स फोरम द्वारा आयोजित किया जा रहा है . उत्तराखंड पीपुल्स फोरम का मानना है कि उत्तराखंड का विकास तभी संभव है जब यहां की जनता का विकास होगा। हमारा मानना है कि इस विकास का संबंध यहां की अति संवेदनशील परिस्थितिकीय व पर्यावरण से तालमेल बैठाए बिना संभव नहीं है। ऐसे विकास के लिए एक नई दृष्टिसंवेदना और सरोकार की जरूरत है। इससे भी बड़ी जरूरत यह है कि इसमें यहां के निवासियों की सक्रिय भागीदारी तो हो हीसाथ ही साथ भारत के आम नागरिक की भी भागीदारी हो । 

यह कहना जरूरी नहीं है कि हिमालय को बचना देश को बल्कि इस उपमहाद्वीप को बचना है। फोरम उत्तराखंड और हिमालय के सबंध में भविष्य में भी ऐसे आयोजन करता रहेगा जो वहां भी आधारभूत समस्याओं को समझने में मददगार होते हो सकें। 

कार्यक्रम में आप सभी का स्वागत है.

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आज उत्तराखंड अभूतपूर्व त्रासदी से गुजर रहा है.  इस त्रासदी ने उत्तराखंड के  विकास के प्रश्नों को एक बार फिर सामने ला  दिया है.   अनियंत्रित विकास, गैरकानूनी निर्माण, और नदियों, पहाड़ों  की  अंधाधुंध, बेरोकटोक  लूट इस भयानक त्रासदी की पृष्ठभूमि है. इस त्रासदी के बाद प्रकाशित निम्नांकित तीनों लेख उत्तराखंड की तबाही  के कारणों पर विशिष्ट राय जाहिर करते है. 


 उत्तराखंड: बाढ़ में केदारनाथ मंदिर कैसे बचा
डॉ खड्ग सिंह वल्दिया,  मानद प्रोफेसरजेएनसीएएसआर
 'नदी किनारे बसने वालों का परिवार नहीं बचता'
चंडी प्रसाद भट्ट 
ये विकास की होड़ है या तबाही को दावत?
शेखर पाठक, पहाड़ पत्रिका के संपादक

रविवार, 2 जून 2013

मित्रो,
उत्तराखंड राज्य की जनता को उसकी  बुनियादी जरूरतों- जल-जंगल, जमीन से, उसके जिन्दा रहने के मूल अधिकारों से और उसे उसकी अपनी सांस्कृतिक पहचान से तेजी से बेदखल किया जा रहा है . राज्य के गठन के इतने वर्षों बाद आज उत्तराखंड की जनता स्वयं को ठगा सा महसूस कर रही है. उत्तराखंड आन्दोलन शहादतों का खून अभी सूखा भी नहीं है कि विकास के नाम पर सब कुछ बेच डालने की होड़ मची हुयी है. 


उत्तराखंड पीपुल्स फोरम, उत्तराखंड के सभी गणमान्य नागरिकों, बुद्धिजीवियों, विचारकों,पत्रकारोंसंस्कृतिकर्मियों और लोकतंत्र पसंद ताकतों से अपील करता है कि उत्तराखंड के जन-जीवन से जुड़े आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरण, जल-जंगल और जमीन के प्रश्नों पर उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर  भी लगातार बहस संचालित की जाये और विकास के नाम पर मची लूट के खिलाफ उत्तराखंड के विकास की एक नयी जनोन्मुख अवधारणा को जनता के सामने लाया जाय. विकास- जिसके केंद्र में उत्तराखंड का सबसे पीछे रह गया आखिरी आदमी हो .

इसी प्रयास में इस  फोरम ने अपनी यात्रा जुलाई'12  में उत्तराखंड में जल-विद्युत परियोजनाओं पर दिल्ली में एक गोष्ठी के आयोजन के साथ की थी . तमाम साथियों के स्नेह और आग्रह के साथ इस वर्ष हमने पहला कार्यक्रम दिनांक 27 अप्रैल'13 को वीर चंद्रसिंह गढ़वाली की स्मृति में "उत्तराखंड: सपने और हकीकत" विषय पर गोष्ठी के साथ किया .
उत्तराखंड पीपुल्स फोरम में आप सभी का स्वागत है. आपकी राय हमारे लिए, उत्तराखंड के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस पहल के परिप्रेक्ष्य में आपके सुझावों का स्वागत है.